Rahat Indori shayari, awesome collection for romantic lover. Rahat Indori is one of the best shayar in India, his most of the shayaries were written on love, relationship.
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You should definitely read these Rahat Indori shayari ones. And you will love him. The way Dr. Rahat Indori said every word was just heart touching.
Here are some Rahat Indori shayari on love. Read these shayari and feel it. I am sure it will touch your heart. With the beginning…“bulati hai magar jane ka nehi…”
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Now here are some Rahat Indori Shayari Lyrics in hindi. This will blow your mind.
"ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो चले हो तो ठहर जाने का नहीं सितारे नोच कर ले जाऊंगा मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं वबा फैली हुई है हर तरफ अभी माहौल मर जाने का नहीं वो गर्दन नापता है नाप ले मगर जालिम से डर जाने का नहीं "
"हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं जो दुनिया में सुनाई दे उसे कहते है ख़ामोशी जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते है जो ये दीवार का सुराख है साज़िश का हिस्सा है मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं ये ख्वाहिश दो निवालों की हमें बर्तन की हाजत क्या फ़क़ीर अपनी हथेली को ही दस्तरख्वान कहते हैं मेरे अंदर से एक-एक करके सब कुछ हो गया रुखसत मगर एक चीज़ बाकी है जिसे ईमान कहते हैं "
"गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है फक़ीर शेख कलन्दर इमाम क्या-क्या है तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है अमीर-ए-शहर के कुछ कारोबार याद आए मैँ रात सोच रहा था हराम क्या-क्या है "
"अगर खिलाफ है होने दो जान थोड़ी है, ये सब धुँआ है कोई आसमान थोड़ी है | लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है | हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है, हमरे मुह में तुम्हारी जबान थोड़ी है | मै जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं है, लेकिन हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है | आज शाहिबे मसनद है कल नहीं होंगे, किरायेदार है जात्ती मकान थोड़ी है | सभी का खून है शामिल इस मिट्टी में, किसे के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है | "
"मेरे हुजरे में नहीं और कही पर रख दो, आसमा लाये हो ले आओ जमी पर रख दो | मैंने जिस ताक में कुछ टूटे दीए रखे हैं चाँद तारों को भी ले जाके वही पर रख दो अब कहा ढूंढने जाओगे हमारे कातिल, आप तो क़त्ल का इल्जाम हमी पर रख दो | हो वो जमुना का किनारा ये कोई शर्त नहीं मिट्टी मिट्टी ही में रखनी है कही पर रख दो "
"मुझमे कितने राज़ हैं, बतलाऊं क्या बन्द एक मुद्दत से हूं, खुल जाऊं क्या ? "
"कभी अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे, जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे | मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उसका, इरादा मैंने किया था कि छोड़ दूँगा उसे | पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज, कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे | बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन, उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे | मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को, समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे | "
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"कल यहां मैं था जहां तुम आज हो मैं तुम्हारी ही तरह इतराऊं क्या? तेरे जलसे में तेरा परचम लिए सैकड़ों लाशें भी हैं गिनवाऊं क्या ? एक पत्थर है वो मेरी राह का, गर न ठुकराऊं, तो ठोकर खाऊं क्या? फिर जगाया तूने सोये शेर को फिर वही लहजा दराज़ी ! आऊं क्या ? "
"चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं, इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं, महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश, जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये है। "
"उसे अब के वफाओं से गुजर जाने की जल्दी थी मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी इरादा था कि मैं कुछ देर तूफाँ का मज़ा लेता मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी मैं अपनी मुट्ठियों मैं क़ैद कर लेता ज़मीनों को मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी मैं आखिर कौनसा मौसम तुम्हारे नाम कर देता यहाँ हर एक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी वो शाखों से जुदा होते हुए पत्तों पे हँसते थे बड़े जिंदा-नज़र थे जिन को मर जाने की जल्दी थी मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूठा है कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी "
वो जो दो पल थे तुम्हारी और मेरी मुस्कान के बीच बस वहीँ कहीं इश्क़ ने जगह बना ली...!
"लवे दीयों की हवा में उछालते रहना गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना मैं नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना "
"जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे मैं कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव मैं तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे तेरा सवाल है साकी के ज़िन्दगी क्या है जवाब देता हु पहले मुझे शराब तो दे "
"तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो तुमको तुम्हारा फ़र्ज़ मुबारख, हमको मुबारख अपना सुलूक हम फूलो की शाख तराशे, तुम चाकू पर धार करो फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापार करो इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो "
"जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से अपनी हर साँस को नीलाम किया है मैंने लोग आसान हुए हैं बड़ी दुश्वारी से ज़हन में जब भी तेरे ख़त की इबारत चमकी एक खुश्बू सी निकलने लगी अलमारी से शाहज़ादे से मुलाक़ात तो ना-मुमकिन है चलिए मिल आते है चल कर किसी दरबारी से बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए हम ने खैरात भी माँगी है तो खुद्दारी से "
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